Saturday, November 05, 2011

बुंदेलखंड का जटासंकर धाम

आज आपके सामने प्रस्तुत है !बुंदेलखंड का प्रसिद्ध धार्मिक तीर्थ स्थल जिसका नाम है !जटासंकर धाम यह बड़ा ही पवित्र धाम है !यहाँ शंकर जी बिराजमान है !और यहाँ तीन छोटे छोटे कुण्ड है ! जिसका जल कभी खत्म नहीं होता !और एक बात यह भी है की इन कुण्ड का जल अलग अलग तापमान पर् रहता है !यह स्थान बुंदेलखंड के मध्यप्रदेश के छतरपुर जिला के बिजावर तहसील से लघभग १५ किलो मीटर की दूरी पर् है !यहाँ पर् जाने के लिए रोड मार्ग सबसे योग्य साधन है !यह स्थान पर्वत पर् स्थित है ! इस स्थान के बारे में एक जन्शुरुती है !की यह मंदिर डाकू मूरत सिंह ने रात भर में बनवाकर तैयार करवा दिया था !डाकू मूरत सिंह की ऊपर पर्वत पर् समाधि भी बनायीं गयी है ! यहाँ की कुछ फोटो आपके लिए नीचे दे रहा हू!

Sunday, October 23, 2011

दिवाली के इस डांस धमाल का मज़ा जरुर ले यहाँ पर्

आज आपको दिवाली के इस डांस धमाल का मज़ा देने के लिए कुछ इंतजाम किया है !यहाँ पर् यदि आप ब्यस्त है तब भी डांस धमाल का मज़ा ले सकते है बेसक बच्चो के लिए यह बहुत पसंद आएगा !जी हा आज आपको एक ऐसी साईट के बारे में बताने वाला हू जहा पर् जाकर आप खुद अपने चेहरे का डांस करता हुआ चलचित्र बना सकते है वो भी मुफ्त में बस आपको इस साईट पर् जाकर अपनी फोटो अपलोड करना है और आगे जाके दिए गए विकल्प के अनुसार आगे बढना है !बहुत आसान है !

Thursday, October 20, 2011

झलकारी बाई की जीवन गाथा

झलकारी बाई का जन्म 22 नवम्बर 1830 को झांसी के पास के भोजला गाँव में एक निर्धन कोली परिवार में हुआ था। झलकारी बाई के पिता का नाम सदोवर सिंह और माता का नाम जमुना देवी था। जब झलकारी बाई बहुत छोटी थीं तब उनकी माँ की मृत्यु के हो गयी थी, और उसके पिता ने उन्हें एक लड़के की तरह पाला था। उन्हें घुड़सवारी और हथियारों का प्रयोग करने में प्रशिक्षित किया गया था। उन दिनों की सामाजिक परिस्थितियों के कारण उन्हें कोई औपचारिक शिक्षा तो प्राप्त नहीं हो पाई, लेकिन उन्होनें खुद को एक अच्छे योद्धा के रूप में विकसित किया था। झलकारी बचपन से ही बहुत साहसी और दृढ़ प्रतिज्ञ बालिका थी। झलकारी घर के काम के अलावा पशुओं के रखरखाव और जंगल से लकड़ी इकट्ठा करने का काम भी करती थी। एक बार जंगल में उसकी मुठभेड़ एक तेंदुए के साथ हो गयी थी, और झलकारी ने अपनी कुल्हाड़ी से उस जानवर को मार डाला था। एक अन्य अवसर पर जब डकैतों के एक गिरोह ने गाँव के एक व्यवसायी पर हमला किया तब झलकारी ने अपनी बहादुरी से उन्हें पीछे हटने को मजबूर कर दिया था।[3] उसकी इस बहादुरी से खुश होकर गाँव वालों ने उसका विवाह रानी लक्ष्मीबाई की सेना के एक सैनिक पूरन कोरी से करवा दिया, पूरन भी बहुत बहादुर था, और पूरी सेना उसकी बहादुरी का लोहा मानती थी। एक बार गौरी पूजा के अवसर पर झलकारी गाँव की अन्य महिलाओं के साथ महारानी को सम्मान देने झाँसी के किले मे गयीं, वहाँ रानी लक्ष्मीबाई उन्हें देख कर अवाक रह गयी क्योंकि झलकारी बिल्कुल रानी लक्ष्मीबाई की तरह दिखतीं थीं (दोनो के रूप में आलौकिक समानता थी)। अन्य औरतों से झलकारी की बहादुरी के किस्से सुनकर रानी लक्ष्मीबाई बहुत प्रभावित हुईं। रानी ने झलकारी को दुर्गा सेना में शामिल करने का आदेश दिया। झलकारी ने यहाँ अन्य महिलाओं के साथ बंदूक चलाना, तोप चलाना और तलवारबाजी की प्रशिक्षण लिया। यह वह समय था जब झांसी की सेना को किसी भी ब्रिटिश दुस्साहस का सामना करने के लिए मजबूत बनाया जा रहा था। लार्ड डलहौजी की राज्य हड़पने की नीति के चलते, ब्रिटिशों ने निःसंतान लक्ष्मीबाई को उनका उत्तराधिकारी गोद लेने की अनुमति नहीं दी, क्योंकि वे ऐसा करके राज्य को अपने नियंत्रण में लाना चाहते थे। हालांकि, ब्रिटिश की इस कार्रवाई के विरोध में रानी के सारी सेना, उसके सेनानायक और झांसी के लोग रानी के साथ लामबंद हो गये और उन्होने आत्मसमर्पण करने के बजाय ब्रिटिशों के खिलाफ हथियार उठाने का संकल्प लिया। अप्रैल १८५८ के दौरान, लक्ष्मीबाई ने झांसी के किले के भीतर से, अपनी सेना का नेतृत्व किया और ब्रिटिश और उनके स्थानीय सहयोगियों द्वारा किये कई हमलों को नाकाम कर दिया। रानी के सेनानायकों में से एक दूल्हेराव ने उसे धोखा दिया और किले का एक संरक्षित द्वार ब्रिटिश सेना के लिए खोल दिया। जब किले का पतन निश्चित हो गया तो रानी के सेनापतियों और झलकारी बाई ने उन्हें कुछ सैनिकों के साथ किला छोड़कर भागने की सलाह दी। रानी अपने घोड़े पर बैठ अपने कुछ विश्वस्त सैनिकों के साथ झांसी से दूर निकल गईं। झलकारी बाई का पति पूरन किले की रक्षा करते हुए शहीद हो गया लेकिन झलकारी ने बजाय अपने पति की मृत्यु का शोक मनाने के, ब्रिटिशों को धोखा देने की एक योजना बनाई। झलकारी ने लक्ष्मीबाई की तरह कपड़े पहने और झांसी की सेना की कमान अपने हाथ मे ले ली। जिसके बाद वह किले के बाहर निकल ब्रिटिश जनरल ह्यूग रोज़ के शिविर मे उससे मिलने पहँची। ब्रिटिश शिविर में पहँचने पर उसने चिल्लाकर कहा कि वो जनरल ह्यूग रोज़ से मिलना चाहती है। रोज़ और उसके सैनिक प्रसन्न थे कि न सिर्फ उन्होने झांसी पर कब्जा कर लिया है बल्कि जीवित रानी भी उनके कब्ज़े में है। जनरल ह्यूग रोज़ जो उसे रानी ही समझ रहा था, ने झलकारी बाई से पूछा कि उसके साथ क्या किया जाना चाहिए? तो उसने दृढ़ता के साथ कहा,मुझे फाँसी दो। जनरल ह्यूग रोज़ झलकारी का साहस और उसकी नेतृत्व क्षमता से बहुत प्रभावित हुआ, और झलकारी बाई को रिहा कर दिया गया. इसके विपरीत कुछ इतिहासकार मानते हैं कि झलकारी इस युद्ध के दौरान वीरगति को प्राप्त हुई। एक बुंदेलखंड किंवदंती है कि झलकारी के इस उत्तर से जनरल ह्यूग रोज़ दंग रह गया और उसने कहा कि "यदि भारत की १% महिलायें भी उसके जैसी हो जायें तो ब्रिटिशों को जल्दी ही भारत छोड़ना होगा"।

Friday, October 14, 2011

ये क्या किया पूनम आपने

आज कल पूनम पाण्डेय पर् जबरजस्त पुब्लिसिटी का भूत सबाल हो गया है !वह कही कपडे उतारने का एलान करती है तो कही कुछ भी कह देती है !इस बार उन्होंने अपनी एक सेमी पोर्न वेबसाइट शुरू कर दी है !पर् अभी लॉन्च नहीं हुई पर् उन्होंने इस पर् ३ मिनट का विडियो अपलोड करके जरूर लोगो को हेरत में ड़ाल दिया है !जब उनसे किसी ने कहा की आप बिग बॉस बिग बॉस में जाने वाली है !तो उन्होंने कहा की मुजहे बिग्बोस में जाने की क्या जरुरत जब लोग मुजहे इस साईट पर् लाइव देख पायेगे !और मेरे बाथरूम और बिस्टर के बोल्ड सीन लाइव देख पायेगे !यदि आप भी उनकी इस साईट के दर्शन करना चाहते है !तो बस यहाँ क्लिक कर दे !और हा जाते जाते इस पोस्ट पर् कमेन्ट भी करते जाए !

Wednesday, October 05, 2011

अब आप खुद करे रावन का दहन यहाँ पर् !

अगर आप ने रावण का दहन नहीं किया है !और आप रावन का दहन करना चाहते है !तो मायुश ना हो क्यों की आज हम आपको लेकर जायेगे एक ऐसी जगह जहा आप खुद रावण का दहन इस शुभ अवसर पर् कर सकते है !जी हा हम बात कर रहे है !एक ऐसी वेबसाइट की जहा आप खुद रावण दहन का मज़ा ले सकते है !तो देर किस बात की अभी चलते है !इस साईट पर् इस साईट पर् जाने के लिए यहाँ क्लिक करे ! अगली पोस्ट में देखे की क्यों मनाया जाता है दसहरा

Tuesday, September 27, 2011

गूगल ने आखिर किस भारतीय को बना दिया अरबपति जाने ?

इंटरनेट सर्च की सबसे बड़ी कंपनी गूगल ने एक भारतीय को अरबपति बना दिया है। कंपनी ने अमेरिका की मोबाइल फोन बनाने वाली कंपनी मोटोरोला मोबिलिटी को खरीदने के बाद उसके भारतीय मूल के सीईओ की विदाई कर दी। लेकिन यह विदाई भी ऐसी-वैसी नहीं थी। गूगल के मोटोरोला के सीईओ संजय झा को गोल्डन पैराशूट मुआवजा दिया और यह कोई मामूली मुआवजा नहीं था। गूगल ने उन्हें 6 करोड़ 66 लाख डॉलर यानी 313 करोड़ रुपए दिए। इसमें से 1 करोड़ 32 लाख डॉलर नकद दिए और 5 करोड़ 24 लाख 70 हजार डॉलर के शेयर दिए। यह नकद राशि उनकी बेसिक सैलरी का तीन गुना है। संजय झा मोटोरोला के सेलफोन डिवीजन के हेड थे। उस समय कंपनी के शेयर भी दिए गए थे। गूगल को उम्मीद है कि मोटोरोला को खरीदने के बाद वह हैंडसेट व्यवसाय में भी बाजी मारेगी और ऐप्पल को टक्कर देगी। अगली पोस्ट में देखे की केसे होगे अब हर बच्चे मैथ में आगे

Saturday, September 17, 2011

डाकू से सांसद बनी फूलन देवी की कहानी

फूलन देवी (10 अगस्त 1963 - 25 जुलाई 2001) डकैत से सांसद बनी एक भारत की एक राजनेता थीं। एक निम्न जाति में उनका जन्म उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गाँव गोरहा का पूर्वा में हुआ था। फूलन की शादी ग्यारह साल की उम्र में हुई थी लेकिन उसके पति और पति के परिवार ने उसे छोड़ दिया था। बहुत तरह की प्रताड़ना और कष्ट झेलने के बाद फूलन का झुकाव डकैतों की तरफ हुआ था। धीरे धीरे फूलन ने अपने खुद का एकज्ज्ज गिरोह खड़ा कर लिया और उसकी नेता बन बैठी। आमतौर पर फूलन को डकैत के रूप में राबिनहुड की तरह गरीबों का पैरोकार समझा जाता था। सबसे पहली बार 1981 में वह राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सुर्खियों में तब आई जब उसने ऊँची जातियों के बाइस लोगों का एक साथ तथाकथित नरसंहार किया जो ठाकुर जाति के ज़मींदार लोग थे। लेकिन बाद में उसने इस नरसंहार से इन्कार किया था। बाद में उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश सरकार तथा प्रतिद्वंदी गिरोहों ने फूलन को पकड़ने की बहुत सी नाकाम कोशिशे की। इंदिरा गाँधी की सरकार ने 1983 में उनसे समझौता किया की उसे मृत्यु दंड नहीं दिया जायेगा और उसके परिवार के सदस्यों को कोई नुकसान नहीं पहुँचाया जायेगा और फूलन ने इस शर्त के तहत अपने दस हजार समर्थकों के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया। बिना मुकदमा चलाये ग्यारह साल तक जेल में रहने के बाद फूलन को 1994 में मुलायम सिंह यादव की सरकार ने रिहा कर दिया। ऐसा उस समय हुआ जब दलित लोग फूलन के सम्र्थन में गोलबंद हो रहे थे और फूलन इस समुदाय के प्रतीक के रुप में देखी जाती थी। फूलन ने अपनी रिहाई के बौद्ध धर्म में अपना धर्मातंरण किया। 1996 में फूलन ने लोकसभा का चुनाव जीता और वह संसद पहुँची। 25 जुलाई सन 2001 को दिल्ली में उनके आवास पर फूलन की हत्या कर दी गयी। उसके परिवार में सिर्फ़ उसके पति उम्मेद सिंह हैं। 1994 में शेखर कपूर ने फूलन पर आधारित एक फिल्म बैंडिट क्वीन बनाई जो काफी चर्चित और विवादित रही। फूलन ने इस फिल्म पर बहुत सारी आप्त्तियाँ दर्ज कराईं और भारत सरकार द्वारा भारत में इस फिल्म के प्रदर्शन पर रोक लगा दी गयी।फुलन के साथ जमिदारो ने बलात्कार किया था | अगली पोस्ट में देखे की केसे बनाये अपने बच्चो को मैथ में आगे जानने के लिए देखे अगली पोस्ट !

Sunday, September 11, 2011

अब आप भी बनाये ANIMATION फोटो कभी भी !

आप अपनी फोटो को animation में बनाना चाहते है !पर् आपके पास कोई बिकल्प नहीं !तो आज आपके लिए यह ब्लॉग लाया है !एक ऐसी साईट जहा जाकर आप अपनी फोटो को animation में बदल सकते है !और उस फोटो को आप अपने ब्लॉग और सोसि़ल नेटवर्क साईट पर भी ड़ाल सकते है !तो देर किस बात की चलते है !इस " साईट" पर् आपको इस साईट पर् जाते ही सब कुछ अपने आप आ जायेगा बहुत ही आसान है !

Tuesday, August 30, 2011

बनाये अपनी फोटो को कार्टून में

आज आपके लिए यह ब्लॉग लाया है !एक ऐसी साईट जिसके द्वारा आप अपनी फोटो को कार्टून के रूप में बना सकते है !
"साईट "
इस साईट पर् आपको जाकर क्लिक करके एक इंस्टाल करने के लिए विजार्ड आएगा जिसे एक्सेप्ट करके आपको आगे बढना है !



कोन बनेगा विजेता प्रतियोगता में जरुर सामिल हो-coming soon


Sunday, August 21, 2011

कौन थे ठाकुर बुन्देलखंडी !


ठाकुर बुंदेलखंडी जाति के कायस्थ थे और इनका पूरा नाम 'लाला ठाकुरदास' था। इनके पूर्वज काकोरी, ज़िला, लखनऊ के रहने वाले थे और इनके पितामह 'खड्गराय जी' बड़े भारी मंसबदार थे। उनके पुत्र गुलाबराय का विवाह बड़ी धूमधाम से ओरछा, बुंदेलखंड के रावराजा की पुत्री के साथ हुआ था। ये ही गुलाबराय ठाकुर कवि के पिता थे। किसी कारण से गुलाबराय अपनी ससुराल ओरछा में ही आ बसे जहाँ संवत् 1823 में ठाकुर का जन्म हुआ। शिक्षा समाप्त होने पर ठाकुर अच्छे कवि निकले और जैतपुर में सम्मान पाकर रहने लगे। उस समय जैतपुर के राजा केसरी सिंह जी थे। ठाकुर के कुल के कुछ लोग 'बिजावर' में भी जा बसे थे। इससे ये कभी वहाँ भी रहा करते थे। बिजावर के राजा ने एक गाँव देकर ठाकुर का सम्मान किया। जैतपुर नरेश 'राजा केसरी सिंह' के उपरांत जब उनके पुत्र राजा 'पारीछत' गद्दी पर बैठे तब ठाकुर उनकी सभा के रत्न हुए। ठाकुर की ख्याति उसी समय से फैलने लगी और वे बुंदेलखंड के दूसरे राजदरबारों में भी आने जाने लगे। बाँदा के हिम्मतबहादुर गोसाईं के दरबार में कभी कभी पद्माकर जी के साथ ठाकुर की कुछ नोंक झोंक की बातें हो जाया करती थीं।

एक बार पद्माकर जी ने कहा - 'ठाकुर कविता तो अच्छी करते हैं पर पद कुछ हलके पड़ते हैं।'
इस पर ठाकुर बोले - 'तभी तो हमारी कविता उड़ी उड़ी फिरती है।'

इतिहास में प्रसिद्ध है कि हिम्मतबहादुर कभी अपनी सेना के साथ अंग्रेजों का कार्य साधन करते थे और कभी लखनऊ के नवाब के पक्ष में लड़ते। एक बार हिम्मतबहादुर ने राजा पारीछत के साथ कुछ धोखा करने के लिए उन्हें बाँदा बुलाया। राजा पारीछत वहाँ जा रहे थे कि मार्ग में ठाकुर कवि मिले और दो ऐसे संकेत भरे सवैये पढ़े कि राजा पारीछत लौट गए। एक सवैया यह है -

कैसे सुचित्त भए निकसौ बिहँसौ बिलसौ हरि दै गलबाहीं।
ये छल छिद्रन की बतियाँ छलती छिन एक घरी पल माहीं॥
ठाकुर वै जुरि एक भईं, रचिहैं परपंच कछू ब्रज माहीं।
हाल चवाइन की दुहचाल की लाल तुम्हें है दिखात कि नाहीं॥

कहते हैं कि यह हाल सुनकर हिम्मतबहादुर ने ठाकुर को अपने दरबार में बुला भेजा। बुलाने का कारण समझकर भी ठाकुर बेधड़क चले गए। जब हिम्मतबहादुर इन पर झल्लाने लगे तब इन्होंने यह कवित्त पढ़ा -

वेई नर निर्नय निदान में सराहे जात,
सुखन अघात प्याला प्रेम को पिए रहैं।
हरि रस चंदन चढ़ाय अंग अंगन में,
नीति को तिलक, बेंदी जस की दिएरहैं।
ठाकुर कहत मंजु कंजु ते मृदुल मन,
मोहनी सरूप, धारे, हिम्मत हिए रहैं।
भेंट भए समये असमये, अचाहे चाहे,
और लौं निबाहैं, ऑंखैं एकसी किएरहैं।
इस पर हिम्मतबहादुर ने जब कुछ और कटु वचन कहा तब सुना जाता है कि ठाकुर ने म्यान से तलवार निकाल ली और बोले ,
सेवक सिपाही हम उन रजपूतन के,
दान जुद्ध जुरिबे में नेकु जे न मुरके।
नीत देनवारे हैं मही के महीपालन को,
हिए के विसुद्ध हैं, सनेही साँचे उर के।
ठाकुर कहत हम बैरी बेवकूफन के,
जालिम दमाद हैं अदानियाँ ससुर के।
चोजिन के चोजी महा, मौजिन के महाराज,
हम कविराज हैं, पै चाकर चतुर के।

हिम्मतबहादुर यह सुनते ही चुप हो गए। फिर मुस्कारते हुए बोले - 'कवि जी बस! मैं तो यही देखना चाहता था कि आप कोरे कवि ही हैं या पुरखों की हिम्मत भी आप में है।' इस पर ठाकुर जी ने बड़ी चतुराई से उत्तर दिया - 'महाराज! हिम्मत तो हमारे ऊपर सदा अनूप रूप से बलिहार रही है, आज हिम्मत कैसे गिर जाएगी?' ठाकुर कवि का परलोकवास संवत् 1880 के लगभग हुआ। अत: इनका कविताकाल संवत् 1850 से 1880 तक माना जा सकता है। इनकी कविताओं का एक अच्छा संग्रह 'ठाकुर ठसक' के नाम से श्रीयुत् लाला भगवानदीनजी ने निकाला है। पर इसमें भी दूसरे दो ठाकुर की कविताएँ मिली हुई हैं। इस संग्रह में विशेषता यह है कि कवि का जीवनवृत्त भी कुछ दे दिया गया है। ठाकुर के पुत्र दरियाव सिंह (चतुर) और पौत्र शंकरप्रसाद भी कवि थे

Friday, August 12, 2011

क्यों मानते है रक्षाबंधन


पौराणिक कथा-
राखी का त्योहार कब शुरू हुआ यह कोई नहीं जानता। लेकिन भविष्य पुराण में वर्णन है कि देव और दानवों में जब युध्द शुरू हुआ तब दानव हावी होते नज़र आने लगे। भगवान इन्द्र घबरा कर बृहस्पति के पास गये। वहां बैठी इंद्र की पत्नी इंद्राणी सब सुन रही थी। उन्होंने रेशम का धागा मंत्रों की शक्ति से पवित्र कर के अपने पति के हाथ पर बांध दिया। वह श्रावण पूर्णिमा का दिन था। लोगों का विश्वास है कि इंद्र इस लड़ाई में इसी धागे की मंत्र शक्ति से विजयी हुए थे। उसी दिन से श्रावण पूर्णिमा के दिन यह धागा बांधने की प्रथा चली आ रही है। यह धागा धन,शक्ति, हर्ष और विजय देने में पूरी तरह समर्थ माना जाता है
ऐतिहासिक कथा -
राजपूत जब लड़ाई पर जाते थे तब महिलाएं उनको माथे पर कुमकुम तिलक लगाने के साथ साथ हाथ में रेशमी धागा भी बांधती थी। इस विश्वास के साथ कि यह धागा उन्हे विजयश्री के साथ वापस ले आएगा। राखी के साथ एक और प्रसिद्ध कहानी जुड़ी हुयी है। कहते हैं, मेवाड़ की महारानी कर्मावती को बहादुरशाह द्वारा मेवाड़ पर हमला करने की पूर्वसूचना मिली। रानी लड़ऩे में असमर्थ थी। उसने मुगल राजा हुमायूं को राखी भेज कर रक्षा की याचना की। हुमायूँ ने मुसलमान होते हुए भी राखी की लाज रखी और मेवाड़ पहुँच कर बहादुरशाह के विरूद्ध मेवाड़ की ओर से लड़ते हुए कर्मावती और उसके राज्य की रक्षा की।[21] कहते है सिकंदर की पत्नी ने अपने पति के हिंदू शत्रु पुरूवास को राखी बांध कर अपना मुंहबोला भाई बनाया और युद्ध के समय सिकंदर को न मारने का वचन लिया। पुरूवास ने युद्ध के दौरान हाथ में बंधी
राखी का और अपनी बहन को दिये हुए वचन का सम्मान करते हुए सिकंदर को जीवदान दिया
साहित्यिक कथा-
अनेक साहित्यिक ग्रंथ ऐसे हैं जिनमें रक्षाबंधन के पर्व का विस्तृत वर्णन मिलता है। इनमें सबसे अधिक महत्वपूर्ण है हरिकृष्ण प्रेमी का ऐतिहासिक नाटक रक्षाबंधन जिसका 1991 में 18वाँ संस्करण प्रकाशित हो चुका है।[25] मराठी में शिंदे साम्राज्य के विषय में लिखते हुए रामराव सुभानराव बर्गे ने भी एक नाटक लिखा है जिसका शीर्षक है राखी ऊर्फ रक्षाबंधन।[26][27] पचास और साठ के दशक में रक्षाबंधन हिंदी फ़िल्मों का लोकप्रिय विषय बना रहा। ना सिर्फ़ 'राखी' नाम से बल्कि 'रक्षाबंधन' नाम से भी फ़िल्‍म बनाई गई। 'राखी' नाम से दो बार फ़िल्‍म बनी, एक बार सन 1949 में, दूसरी बार सन 1962 में, सन 62 में आई फ़िल्‍म को ए. भीमसिंह ने बनाया था, कलाकार थे अशोक कुमार, वहीदा रहमान, प्रदीप कुमार और अमिता। इस फ़िल्‍म में राजेंद्र कृष्‍ण ने शीर्षक गीत लिखा था- 'राखी धागों का त्‍यौहार'। सन 1972 में एस.एम.सागर ने फ़िल्‍म बनाई थी 'राखी और हथकड़ी' इसमें आर.डी.बर्मन का संगीत था। सन 1976 में राधाकांत शर्मा ने फ़िल्‍म बनाई 'राखी और राइफल'। दारा सिंह के अभिनय वाली यह एक मसाला फ़िल्‍म थी। इसी तरह से सन 1976 में ही शांतिलाल सोनी ने सचिन और सारिका को लेकर फ़िल्‍म 'रक्षाबंधन' नाम की बनाई

Wednesday, August 10, 2011

MERE- BROTHER- KI- DULHAN MOVIE'S SONGS


MERE BROTHER KI DULHAN-"download"
DHUNKI-"download"
CHOOMANTAR-"download"
ISQ RISK-"download"d
MADHUBALA-"download"
DO DHAARI TALWAAR-"download"

महान क्रन्तिकारी चंद्रशेखर आजाद यहाँ भी !


आज में आपको एक ऐसी जगह के बारे में बताने वाला हू !जिसके बारे में सायद ही आप जानते हो यहाँ पर् इतिहास के उस दिन की याद आज भी मोजूद है !में बात कर हू बुंदेलखंड में जिला पन्ना में जो हीरो के लिए प्रसिद है!यहाँ पर् ४ सितम्बर 1929 को स्वतंत्रता सेनानी श्री चंद्रशेखर की अध्यक्षता में क्रांतिकारियो की बैठक सम्पन हुई थी !इस बैठक का आयोजन पंडित राम सहाय तिवारी ने किया था !इसमें जिला टीकमगढ़ के श्री नारायणदास खरे व प्रेम नारायण और सरीला के निवासी विहारी लाल और महोबा के निवासी जय नारायण और झाँसी के चार अन्य लोगो ने इस बैठक में भाग लिया था !यह जगह बहुत घने जंगल में आज भी मोजूद है जहा पर् पांडव फोल नाम का जल प्रपात भी है !यह जगह पन्ना टाइगर रिजर्व के पास ही है !जहा पर् चन्द्रशेखर जी की प्रतिमा भी बनी हुई है !

Friday, August 05, 2011

आरक्षण फिल्म के गाने

ARAKSHAN MOVIE SONGS
आज मैने आपके लिए इस ब्लॉग से कुछ नयी फिल्मो के गाने उपलब्ध करवाने का प्रयाश किया!आज आपके लिए पेस है प्रकाश झा की फिल्म आरक्षण के सभी गाने !


Accha lagta hai-"download"
Mauka-"download"
Kon si dor-"download"
Roshanee-"download"
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Saturday, July 30, 2011

किसी को भी भेजे गए scrap के नीचे लिखे अपने ब्लॉग का य फ़िर अपना नाम

आपने कभी ऑरकुट और फेसबुक साईट पर् स्क्रैप भेजे है जबाब होगा हा !पर् आपने स्क्रैप की जिस साईट से स्क्रेप भेजे होगे उस साईट के नीचे सायद उस साईट का नाम लिखा रहता है !यह देखकर आपके मन में ख्याल भी आया होगा की इस साईट के जगह मेरा य मेरे ब्लॉग का नाम होता तो कितना अच्छा होता !और उस पर् क्लिक करके कास मेरे ब्लॉग पर् भी पंहुचा जा सकता तो यह पोस्ट आपके लिए ही है !आज में आपको एक ऐसी ट्रिक बताने जा रहा हू जिसके द्वारा आप यह कर सकते है !इस ट्रिक के द्वारा आप अपनी साईट पर् you tube के द्वारा कोई विडियो डालते है तो उस विडियो के नीचे भी आप अपना नाम ड़ाल सकते है !
चलो अब में आपको बताता हू की ट्रिक क्या है ! यह ट्रिक HTML CODE में परिबर्तन करके अपनाई जाती है !यह ट्रिक आपके बहुत काम की होगी यदि आप HTML CODE नहीं जानते !
में आपको कुछ उदाहरण देकर बताता हू की यह कैसे किया जाता है! जैसे मैने अपनी ऑरकुट प्रोफाइल पर् अपने दोस्त को यह स्क्रैप भेजा इस स्क्रैप के नीचे उस साईट का नाम लिखा है जिसके द्वारा इस स्क्रैप का कोड प्राप्त किया है देखे
पहले


Scrappur.Com


बाद में


samratbundelkhand.com

अब इसी scrap के नीचे मैने इस ट्रिक के द्वारा लिख दिया samratbundelkhand.com अपने ब्लॉग के नाम की जगह आप कुछ भी लिख सकते है लिख सकते है !पर् हम लिंक वही डालेगे जिस पर् किसी को भी इस पर् क्लिक करके पहुचाना चाहते है ! अब यह कैसे होता आपको बताता हू जैसे पहले वाले स्क्रैप का कोड है!






अब में आपको बताता हू की आपको कहा कहा कोड में परिवर्तन करना है !सबसे पहले हमें कोड में देखना है की href=”http:// के बाद कोड में कोन सी साईट लिखी है !जैसे इस कोड में लिखा है scrapper.com तो इस साईट की जगह हम अपने ब्लॉग का य उस साईट का नाम लिख सकते है !जिस पर् हम किसी को इस पर् क्लिक करके पहुचाना चाहते है !इस के बाद हमें कोड में देखना है की >यहाँ पर्< , > और <,के बीच में क्या लिखा है !जैसे इस कोड में लिखा है scrappur.com इसकी जगह आपको यहाँ पर् वही लिखना है जो आप स्क्रैप के नीचे दिखाना चाहते है !
इस कोड को देखकर आपको आपको सब कुछ पता चल जायेगा देखे




मुजहे लगता यह अब आपको आ गया होगा ! मैने बड़ी बारीकी के साथ आपको यह बताया है !यदि अब भी आपको कोई परेशानी है !तो आप मेरे से संपर्क कर सकते है !

पर् याद रखे यह ट्रिक उन्ही स्क्रैप वाली साईट पर् काम आएगी जो कोड को कॉपी करके scrap भेजने की सुभिधा देती है !



अगले माह की कौन बनेगा विजेता प्रतियोगता-२ में भाग जरुर ले !
by
Photobucket

Friday, July 29, 2011

कौन बनेगा विजेता प्रतियोगता -१ के विजेता है

Bhagat Singh Panthi
Graphic Designer, Bhopal

सम्राट बुंदेलखंड की पहली प्रतियोगता
कौन बनेगा विजेता प्रतियोगता -1
का विजेता आखिर मिल ही गया !इस प्रतियोगता में कुल १० लोगो ने भाग लिया इन सभी लोगो ने मेल किये पर् कुछ ना कुछ गलत किया पर् सबसे पहले और सही जबाब हमें भेजे भगत सिंग पंथी जी ने जो की भोपाल मद्यप्रदेश भारत के रहने वाले है !
इस प्रतियोगता में कुल ६ सवाल इसी ब्लॉग से सम्बंधित पूछे गए और उन सभी ६ सवालो के जबाब कुछ इस प्रकार दिए भगत जी ने-
1.छवि राजावत ने किस कॉलेज से स्नातक की है?
Ans : दिल्ली के लेडी श्री राम कॉलेज से
2.शिवाजी जी और महाराजा छत्रसाल की मुलाकात किस सन में हुई?
Ans; सन 1668
3.रानीदुर्गावती जी के पिता का क्या नाम था ?
Ans; राजा कीर्ति सिंह
4.रानी लक्ष्मीबाई ने अपने अंत समय में किस साधु के हाथो गंगा जल पीकर देह त्याग दिया?
Ans;साधु गंगादास
5.इस ब्लॉग के लास्ट में डाले विडियो में कितने लोग पानी में बहाकर खाई में चले गए ?
Ans : 5
6.इस ब्लॉग में song of the day में कोन सा song डाला है
Ans:ye mausam ka jaadu hai mitwa

भगत जी को बहुत ही जल्द एक इ अशासकीय प्रमाणपत्र जो उनके ब्लॉग य साईट के लिए मात्र एक इस ब्लॉग द्वारा आयोजित प्रतियोगता के विजेता होने का सबूत होगा जो सम्राट बुंदेलखंड द्वारा दिया जायेगा
पर् यह कही मान्य नहीं होगा !
पर् जो लोग इस प्रतियोगता में नहीं हो पाए विजेता य नहीं ले पाए भाग तो निराश ना हो अगले माह की प्रतियोगता में भाग ले ! और इस प्रतियोगता के बारे में बताये सभी को

हमारी तरफ से भगत सिंग पंथी जी को हार्दिक सुभकामनाये !

कौन बनेगा विजेता प्रतियोगता -1


प्रतियोगता के सभी नियम "पिछले लेख "में दे दिए गए है !अब बारी है सवालो की आपको अपने सवाल नाम व फोटो के साथ shuklaupendra890@gmail.com पर् भेजना है !और जवाब 12घंटे के अंदर भेज दे !
सवाल -
1.छवि राजावत ने किस कॉलेज से स्नातक की है?
2.शिवाजी जी और महाराजा छत्रसाल की मुलाकात किस सन में हुई?
3.रानीदुर्गावती जी के पिता का क्या नाम था ?
4.रानी लक्ष्मीबाई ने अपने अंत समय में किस साधु के हाथो गंगा जल पीकर देह त्याग दिया?
5.इस ब्लॉग के लास्ट में डाले विडियो में कितने लोग पानी में बहाकर खाई में चले गए ?
6.इस ब्लॉग में song of the day में कोन सा song डाला है !

विजेता आप भी हो सकते है !भेजे अपने जबाब सारे जबाब इसी ब्लॉग में मिल जायेगे तो देर किस बात की हो जाईये सुरु !
और हा विजेता को इस ब्लॉग पर् नाम खोसित होने के साथ मिलेगा एक अशासकीय इ प्रमाणपत्र सिर्फ आपके ब्लॉग के लिए आपके नाम के साथ यह प्रमाणपत्र सिर्फ आपके विजेता होने मात्र का सबूत होगा जिसे आप अपने ब्लॉग पर् लगा सकेगे याद रखे यह कही मान्य नहीं होगा !

Thursday, July 28, 2011

कौन बनेगा बिजेता प्रतियोगता





सम्राट बुंदेलखंड आयोजित कर रहा है !एक प्रतियोगता जिसमे इसी ब्लॉग से सम्बंधित प्रश्न पूछे जायेगे !आप अपने जबाब हमें SHUKLAUPENDRA890@GMAIL.COM PAR १२ घंटे के अंदर भेजना है !विजेता कोई एक चुना जायेगा जिसका नाम १२ घंटे के बाद इसी ब्लॉग पर् घोषित आपकी फोटो के साथ किया जायेगा इसीलिए जबाब के साथ आप अपनी फोटो जरुर ईमेल करे !इस प्रतियोगता में कोई भी भाग ले सकता है !बच्चे भी चाहे तो इस प्रतियोगता में भाग ले सकते है !इसमें इस ब्लॉग से सम् बंधित ६ सवाल पूछे जायेगे !सभी सही और पहले जबाब भेजने वाले को विजेता घोषित किया जायेगा !पर् यदि आप लेट पहुचे तो ये ना सोचे की अब क्या क्यों की आप से पहले भेजे गए जबाब गलत भी हो सकते है !और इस प्रतियोगता के बारे में आप कई लोगो को बतलाकर इस ब्लॉग पर् उनको इस प्रतियोगता में भाग लेने के लिए आमंत्रित कर सकते है !आखिर तभी तो सभी लोग जानेगे की आप ही विजेता हुए है !

आखिर कोन बनेगा विजेता बुंदेलखंड

याद रखे जो जीता वही सिकंदर

अब आपको इस प्रतियोगता के सवाल दिनाक 29/7/2011 को दोपहर १ और २ के बीच में प्रकाशित किये जायेगे !



याद रखे बुंदेलखंड विजेता कही आप तो नहीं

Monday, July 25, 2011

क्यों कराना चाहती है फ्रीडा पिंटो अपना डीएनए टेस्ट




आस्कर विजेता फिल्म की नायिका फ्रीडा आखिर क्यों करना चाहती है !अपना डीएनए टेस्ट आइये आपको बता दे

अपने पूर्वजों का इतिहास जानने के लिए भायतीय मूल की अदाकारा फ्रीडा पिंटो अपना डीएनए टेस्ट कराने वाली हैं। 2008 में फिल्म "स्लमडॉग मिलेनियर" से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त करने वाली 26 वर्षीय फ्रीडा को लगने लगा है कि उनके पूर्वजों का संबंध पुर्तगाल से हो सकता है।

फ्रीडा के मुत‌ाबिक पुर्तगाल के लोग उन्हें देखकर कहते हैं कि मैं उनके जैसी दिखती हूं। लेकिन फ्रीडा को गैर भारतीय कहलाना कतई अच्छा नहीं लगता।
पिंटो कहती है कि जब वह इस्तान्बुल गई थीं तो महिलाओं के एक समूह ने पिंटो नाम की वजह से उन्हें पुर्तगाली समझ लिया था। इस बस के बावजूद
फ्रीडा अपने पूर्वजों के बारे में जड़ाजानने के लिए उत्सुक ह
डीएनए टेस्ट कराने के पीछे फ्रीडा का मुख्य मकसद लोगों के बीच फैला भ्रम है। फ्रीडा जब कभी विदेश में धूमने जाती हैं तो ज्यादातर लोग उसके मूल निवास के बारे में गलत सोचते हैं। लोगों को यह यकीन नहीं होता कि फ्रीडा भारतीय हैं। मालूम हो कि फ्रीडा दक्षिण भारत के मंगलौर की रहने वाली हैं। फ्रीडा ने कहा कि वह भारतीय संस्कृति से संबंध रखने वाली हिंदू लड़की है लेकिन फिर भी डीएनए टेस्ट जरूर कराना चाहेंगी।

Wednesday, July 20, 2011

आखिर कहा से आया समोसा


समोसा दक्षिण एशिया का एक लोकप्रिय व्यंजन है। इस लज़ीज़ त्रिभुजाकार व्यंजन को आटा या मैदा के साथ आलू के साथ बनाया जाता है और चटनी के साथ परोसा जाता है। ऐसा माना जाता है कि समोसे की उत्पत्ति उत्तरी भारत में हुई ऑर फिर यह धीरे-धीरे पूरे भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश सहित आस-पास के क्षेत्रों में भी काफी लोकप्रिय हुआ। यह भी माना जाता है कि समोसा मध्यपूर्व से भारत आया और धीरे-धीरे भारत के रंग में रंग गया। कुछ इतिहासकारों का कहना है कि दसवीं शताब्दी में मध्य एशिया में समोसा एक व्यंजन के रूप में सामने आया था। 13-14वीं शताब्दी में व्यापारियों के माध्यम से समोसा भारत पहुँचा। महान कवि अमीर खुसरो (1253-1325) ने एक जगह जिक्र किया है कि दिल्ली सल्तनत में उस दौरान स्टड मीट वाला घी में डीप फ्राई समोसा शाही परिवार के सदस्यों व अमीरों का प्रिय व्यंजन था। १४ वीं शताब्दी में भारत यात्रा पर आये इब्नबतूता ने मो0 बिन तुगलक के दरबार का वृतांत देते हुए लिखा कि दरबार में भोजन के दौरान मसालेदार मीट, मंूगफली और बादाम स्टफ करके तैयार किया गया लजीज समोसा परोसा गया, जिसे लोगों ने बड़े चाव से खाया। यही नहीं 16वीं शताब्दी के मुगलकालीन दस्तावेज आईने अकबरी में भी समोसे का जिक्र बकायदा मिलता है।

समोसे का यह सफर बड़ा निराला रहा है। समोसे की उम्र भले ही बढ़ती गई पर पिछले एक हजार साल में उसकी तिकोनी आकृति में जरा भी परिवर्तन नहीं हुआ। आज समोसा भले ही शाकाहारी-मांसाहारी दोनों रूप में उपलब्ध है पर आलू के समोसों का कोई सानी नहीं है और यही सबसे ज्यादा पसंद भी किया जाता है। इसके बाद पनीर एवं मेवे वाले समोसे पसंद किये जाते हैं। अब तो मीठे समोसे भी बाजार में उपलब्ध हैं। समोसे का असली मजा तो उसे डीप फ्राई करने में है, पर पाश्चात्य देशों में जहाँ लोग कम तला-भुना पसंद करते हैं, वहां लोग इसे बेक करके खाना पसंद करते हैं। भारत विभिन्नताओं का देश है, सो हर प्रांत में समोसे के साथ वहाँ की खूबियाँ भी जुड़ती जाती हैं। उ0प्र0 व बिहार में आलू के समोसे खूब चलते हैं तो गोवा में मांसाहारी समोसे ज्यादा लोकप्रिय हैं। पंजाबी समोसा खूब चटपटा होता है तो चाइनीज क्यूजीन पसंद करने वालों के लिए नूडल्स स्टड समोसे भी उपलब्ध हैं। बच्चों और बूढ़ों दोनों में समोसे के प्रति दीवानगी को भुनाने के लिए तमाम बहुराष्ट्रीय कम्पनियां इसे फ्रोजेन फूड के रूप में भी बाजार में प्रस्तुत कर रही हैं।

Wednesday, July 06, 2011

ब्लॉग widget बनाने के साथ बनाए मोबाइल app भी बिना तकनीकी ज्ञान के


आज आपके लिए पेस है !एक ऐसी वेबसाइट जो आपके लिए बड़ी ही उपयोगी साबित हो सकती है !क्या है यह साईट चलो इसके बारे में भी बता ही देते है !इस वेबसाइट के जरिये आप अपने ब्लॉग के लिए widget बना सकते है !वो भी बिना कुछ तकनीकी ज्ञान के और बहुत कुछ आप यहाँ कर सकते है अपने ब्लॉग के लिए बस आपको यहाँ अपने ब्लॉग का पता डालना होगा और कुछ मामूली सी जानकारी अपने ब्लॉग के बारे में यहाँ पर् डालनी होगी ! अपने ब्लॉग का widget बनाते समय !और इस widget को अपने ब्लॉग पर् लगाने के बाद कोई भी आपके ब्लॉग के widgets को अपने ब्लॉग पर् लगा सकता है ! जिससे आपका ब्लॉग कई लोगो तक पहुचता है !इस widget के नीचे get widget का विकल्प होता है !जिससे कोई भी यह कोड प्राप्त करके आपके ब्लॉग का widget अपने ब्लॉग पर् लगा सकता है !बस widget बनाने के बाद आपको यहाँ पर् अपना अकाउंट बनाना पड़ता है widget का कोड प्राप्त करने के लिए!
इस साईट पर् एक और शुभिधा है !की आप यहाँ से अपने मोबाइल के लिए web aap भी बना सकते है !बिना तकनीकी ज्ञान के !
आपके ब्लॉग का widget कैसा दिखेगा इसके लिए
सम्राट बुंदेलखंड ब्लॉग के widget की फोटो इस पोस्ट में सबसे ऊपर दी गयी है !
इस साईट पर् जाने के लिए बस "यहाँ क्लिक करे"
इस साईट पर् जाते ही आपको नई विंडो नज़र आएगी जहा पर् आपको widget पर् क्लिक करके आगे बढना है !
इस साईट पर् आप अपने ब्लॉग के लिए बहुत कुछ कर सकते है !

Wednesday, June 29, 2011

भारत क्यों है ऐसा


भारत एक ऐसा देश जहा कहा जाता है!की सभी नागरिक समान है !और सभी को सामान अधिकार है !और यहाँ पर् नागरिको के अधिकारों के लिए मोलिक अधिकार भी बनाये गए है !जिनका पालन होता है !और यहाँ पर् शिक्षा का अधिकार प्रत्येक बच्चे को दिया गया है !साथ ही साथ बाल श्रम के विरोध में कानून बनाया गया है!और यहाँ पर् सभी को अपनी बात कहने की स्वतंत्रता है !यह सब कहना है सविधान में लिखे लेखो का!
पर् क्या ऐसा होता है क्या आपको अपनी बात कहने की स्वतंत्रता मिलती है !आपको अपनी बात कहने की स्वतंत्रता तो मिलती होगी पर् सायद अपनी बात कहने के बाद आपको सुरक्षा के लिए भागना पड़ता हो !आज के समय में आपके पास कई ऐसे उदहारण है !जो सविधान के इन लेखो के साथ साथ सरकार की भी पोल खोल रही है!जैसे आजकल पर् आप सोच रहे होगे की इन बातो पर् मीडिया भी जोर क्यों नहीं देता !तो में आपको बता दू आज कल मीडिया भी भ्रष्ट लोगो के हाथो बिक चूका है !तभी तो सायद ऐसे राज्य जहा पर् सायद शिक्षा गावो तक ना पहुच पाई हो पर् कुछ चेनलो पर् सरकार की झूठी तारीफ की जाती है जो सायद कभी कभी आधे य एक घंटे तक चलती है !और सरकार कई तरह के कानून बनाती है की जनता की आवाज़ सीधी सरकार तक पहुचे पर् सायद जनता की आवाज़ जिला के कलेक्टर तक ही नहीं पहुच पाती है !क्यों की एक आम आदमी को क्ल्लेक्टेर के पास अपनी बात कहने के लिए जाने तक नहीं दिया जाता !अरे भाई उनके बॉडीगार्ड जो उनके साथ लगे रहते है! वे कलेक्टर साहब की रक्षा ठीक उसी तरह करते है !जैसे मधुमखी अपने छाते की करती है ! क्यों की मेरे हिसाब से सायद यहाँ कानून आम लोगो के लिए ही बस होता है !
और हा मेरा एक सवाल जो सायद आप लोग बता पाए की आजकल भारत में योग्य आदमी की जगह अयोग्य आदमी ही शासन में क्यों लिए जा रहे है !यह बात मेरी समझ में नहीं आती इसे आप ही बता सके !
और हा अंत में एक गाना आपके लिए जो इस देश की व इस देश के नेताओ के बारे कुछ कह रहा है !तो आप सुन ले !

Wednesday, June 22, 2011

कौन थी रानी दुर्गावती


आज आपके सामने पेश है !बुंदेलखंड की एक और महारानी की वीरता की कहानी जिनका नाम था रानी दुर्गावती नाम तो सुना ही होगा !
बुंदेलखंड में कालिंजर दुर्ग(बांदा)

अपनी विशालता व भब्यता के लिए प्रसिद्ध है!यहाँ के राजा कीर्ति सिंह की पुत्री थी रानी दुर्गावती !उनका जन्म 1540 के आस-पास हुआ था !
बालिका दुर्गा ने बचपन से ही अस्वा रोही व सस्त्र संचालन तथा तेराकी में निपुरता प्राप्त कर ली थी !तीर भाले व बन्दुक का निशाना उनका अचूक था !शेरो का आमने सामने शिकार करना उनका महत्वपूर्ण शौक था!"आगे पढ़ने के लिए क्लिक करे" !

Wednesday, June 08, 2011

अब pdf फाइल को एडिट करने के साथ करे बहुत कुछ


आप यदि pdf फाइल को एडिट करना चाहते हो !लेकिन मन में एक सवाल की कहा से pdf फाइल को एडिट करे !तो भाई टेंसन मत लो क्यों की आज में आपके लिए लेकर आया हू ! एक ऐसा टूल जिसके द्वारा आप यह काम कर सकते है ! चलो इस टूल का आपको हम नाम भी बता दे! इस टूल का नाम है ! pdf editer ! इसके द्वारा आप pdf फाइल के साथ बहुत कुछ कर सकते है जिसकी लिस्ट बहुत बड़ी है ! ! इसके द्वारा तो आप pdf फाइल को बना भी सकते है! और pdf फाइल में फोटो जोड़ सकते है !कई काम आप इस टूल के द्वारा कर सकते है ! तो देर किस बात की भाई अभी चलकर इस टूल को डाउनलोड कर ही लेते है !
इस टूल को डाउनलोड करने के लिए " यहाँ क्लिक करे "! इस पर् क्लिक करते ही आपके स्क्रीन पर् नई विंडो खुल जायेगी ! जो कुछ इस तरह दिखाई देगी !जैसे ऊपर दी गयी है!
इस विंडो के नीचे और ऊपर भाग में डाउनलोड का आप्शन दिया गया है !बस आपको वही पर् क्लिक कर देना है !और आपका टूल डाउनलोड हो जायेगा !और इंस्टाल करने के बाद इस टूल का उपयोग करे !

Saturday, June 04, 2011

देखे अपने बच्चे की फोटो अभी !


आज में आपको एक ऐसी साईट के बारे में बताने जा रहा हूँ!यह साईट बहुत ही मज़ेदार साईट है!पर सायद बहुत ही कम लोग इस साईट के बारे में जानते हो!तो अब और चर्चा छोडकर इस साईट के बारे में बताता हू! इस साईट पर आप अपने बच्चे की फोटो देख पायेगे शादी से पहले ही ! कैसे अरे भाई बताते है!जरा इन्तजार तो करो!क्या होता है! में आपको बताता हू !इस साईट पर आपको अपनी और अपने पार्टनर की फोटो अपलोड करनी पड़ती है! आगे पढ़ने के लिए "यहाँ क्लिक करे"

Thursday, June 02, 2011

क्या आप जानते है !छवि राजावत को !


क्या आप जानते है छवि राजावत को ! नहीं अरे भाई आखिर फुर्सत मिले न्यूज देखने की तब तो जानोगे की कौन है!आखिर छवि राजावत !
चलिये हम बताते है !आखिर कौन है !छवि राजावत और में ये आज छवि राजावत का टाँपिक लेकर क्यों बैठ गया हूँ !चलिये आपका भी परिचय कराते है छवि राजावत से
परिचय नाम –छवि राजावत
खास बात –भारत के राजस्थान के सोडा गाव की सरपंच आगे पढ़ने के लिए "यहाँ क्लिक करे"

Tuesday, May 31, 2011

रजिस्टर्ड सॉफ्टवेयर बिल्कुल फ्री में डाउनलोड करे कभी भी !


बहुत से लोग आज कल नेट से फ्री सॉफ्टवेयर की ज़ुगाड़ लगा ही लेते है
और कई साईट भी जानते है!
पर जो लोग नहीं जानते उनके लिए यह करना भी मुश्किल होता है!पर कोई बात नहीं
आपको कोई सॉफ्टवेयर चाहिए बहुत ढ़ूढ़ा नहीं मिला! कोई बात नहीं आज में आपको कुछ ऐसी साईट बता रहा हूँ! जहा से आप कोई भी अपनी पसंद का सॉफ्टवेयर बिलकुल फ्री में डाउनलोड कर सकते है!
आगे पढने के लिए "यहाँ क्लिक करे"

Saturday, May 28, 2011

अपनी फोटो को बनाये चाहे जैसा !


आप फोटो एडिट करना चाहते हो कोई अच्छा बैकग्राउंड लगाना चाहते हो कही नहीं मिला !चलो कोई बात नहीं आज में आपको एक ऐसी वेबसाइट पर ले चलता हूँ! जहाँ आप अपनी फोटो के साथ बहुत कुछ कर सकते है !वो भी बिल्कुल फ्री में आगे पढ़ने के लिए" यहाँ क्लिक करे!"

Wednesday, May 25, 2011

महाराजा छत्रसाल


चंपतराय जब समय भूमि मे ंजीवन-मरण का संघर्ष झेल रहे थे उन्हीं दिनों ज्येष्ठ शुक्ल 3 संवत 1707 (सन 1641) को वर्तमान टीकमगढ़ जिले के लिघोरा विकास खंड के अंतर्गत ककर कचनाए ग्राम के पास स्थित विंध्य-वनों की मोर पहाड़ियों में इतिहास पुरुष छत्रसाल का जन्म हुआ। अपने पराक्रमी पिता चंपतराय की मृत्यु के समय वे मात्र 12 वर्ष के ही थे। वनभूमि की गोद में जन्में, वनदेवों की छाया में पले, वनराज से इस वीर का उद्गम ही तोप, तलवार और रक्त प्रवाह के बीच हुआ।
पांच वर्ष में ही इन्हें युद्ध कौशल की शिक्षा हेतु अपने मामा साहेबसिंह धंधेर के पास देलवारा भेज दिया गया था। माता-पिता के निधन के कुछ समय पश्चात ही वे बड़े भाई अंगद राय के साथ देवगढ़ चले गये। बाद में अपने पिता के वचन को पूरा करने के लिए छत्रसाल ने पंवार वंश की कन्या देवकुंअरि से विवाह किया।
जिसने आंख खोलते ही सत्ता संपन्न दुश्मनों के कारण अपनी पारंपरिक जागीर छिनी पायी हो, निकटतम स्वजनों के विश्वासघात के कारण जिसके बहादुर मां-बाप ने आत्महत्या की हो, जिसके पास कोई सैन्य बल अथवा धनबल भी न हो, ऐसे 12-13 वर्षीय बालक की मनोदशा की क्या आप कल्पना कर सकते हैं? परंतु उसके पास था बुंदेली शौर्य का संस्कार, बहादुर मां-माप का अदम्य साहस और ‘वीर वसुंधरा’ की गहरा आत्मविश्वास। इसलिए वह टूटा नहीं, डूबा नहीं, आत्मघात नहीं किया वरन् एक रास्ता निकाला। उसने अपने भाई के साथ पिता के दोस्त राजा जयसिंह के पास पहुंचकर सेना में भरती होकर आधुनिक सैन्य प्रशिक्षण लेना प्रारंभ कर दिया।
राजा जयसिंह तो दिल्ली सल्तनत के लिए कार्य कर रहे थे अतः औंरगजेब ने जब उन्हें दक्षिण विजय का कार्य सौंपा तो छत्रसाल को इसी युद्ध में अपनी बहादुरी दिखाने का पहला अवसर मिला। मइ्र 1665 में बीजापुर युद्ध में असाधारण वीरता छत्रसाल ने दिखायी और देवगढ़ (छिंदवाड़ा) के गोंडा राजा को पराजित करने में तो छत्रसाल ने जी-जान लगा दिया। इस सीमा तक कि यदि उनका घोड़ा, जिसे बाद में ‘भलेभाई’ के नाम से विभूषित किया गयाउनकी रक्षा न करता तो छत्रसाल शायद जीवित न बचते पर इतने पर भी जब विजयश्री का सेहरा उनके सिर पर न बांध मुगल भाई-भतीजेवाद में बंट गया तो छत्रसाल का स्वाभिमान आहत हुआ और उन्होंने मुगलों की बदनीयती समझ दिल्ली सल्तनत की सेना छोड़ दी।
इन दिनों राष्ट्रीयता के आकाश पर छत्रपति का सितारा चमचमा रहा था। छत्रसाल दुखी तो थे ही, उन्होंने शिवाजी से मिलना ही इन परिस्थितियों में उचित समझा और सन 1668 में दोनों राष्ट्रवीरों की जब भेंट हुई तो शिवाजी ने छत्रसाल को उनके उद्देश्यों, गुणों और परिस्थितियेां का आभास कराते हुए स्वतंत्र राज्य स्थापना की मंत्रणा दी एवं समर्थ गुरु रामदास के आशीषों सहित ‘भवानी’ तलवार भेंट की-
करो देस के राज छतारे
हम तुम तें कबहूं नहीं न्यारे।
दौर देस मुगलन को मारो
दपटि दिली के दल संहारो।
तुम हो महावीर मरदाने
करि हो भूमि भोग हम जाने।
जो इतही तुमको हम राखें
तो सब सुयस हमारे भाषंे।

शिवाजी से स्वराज का मंत्र लेकर सन 1670 में छत्रसाल वापस अपनी मातृभूमि लौट आयी परंतु तत्कालीन बुंदेल भूमि की स्थितियां बिलकुल मिन्न थीं। अधिकाश रियासतदार मुगलों के मनसबदार थे, छत्रसाल के भाई-बंधु भी दिल्ली से भिड़ने को तैयार नहीं थे। स्वयं उनके हाथ में धन-संपत्ति कुछ था नहीं। दतिया नरेश शुभकरण ने छत्रसाल का सम्मान तो किया पर बादशाह से बैर न करने की ही सलाह दी। ओरछेश सुजान सिंह ने अभिषेक तो किया पर संघर्ष से अलग रहे। छत्रसाल के बड़े भाई रतनशाह ने साथ देना स्वीकार नहीं किया तब छत्रसाल ने राजाओं के बजाय जनोन्मुखी होकर अपना कार्य प्रारंभ किया। कहते हैं उनके बचपन के साथी महाबली तेली ने उनकी धरोहर, थोड़ी-सी पैत्रिक संपत्ति के रूप में वापस की जिससे छत्रसाल ने 5 घुड़सवार और 25 पैदलों की छोटी-सी सेना तैयार कर ज्येष्ठ सुदी पंचमी रविवार वि.सं. 1728 (सन 1671) के शुभ मुहूर्त में शहंशाह आलम औरंगजेब के विरूद्ध विद्रोह का बिगुल बजाते हुए स्वराज्य स्थापना का बीड़ा उठाया।

संघर्ष का शंखनाद
छत्रसाल की प्रारंभिक सेना में राजे-रजवाड़े नहीं थे अपितु तेली बारी, मुसलमान, मनिहार आदि जातियों से आनेवाले सेनानी ही शामिल हुए थे। चचेरे भाई बलदीवान अवश्य उनके साथ थे। छत्रसाल का पहला आक्रमण हुआ अपने माता-पिता के साथ विश्वासघात करने वाले सेहरा के धंधेरों पर। मुगल मातहत कुंअरसिंह को ही कैद नहीं किया गया बल्कि उसकी मदद को आये हाशिम खां की धुनाई की गयी और सिरोंज एवं तिबरा लूट डाले गये। लूट की सारी संपत्ति छत्रसाल ने अपने सैनिकों में बांटकर पूरे क्षेत्र के लोगों को उनकी सेना में सम्मिलित होने के लिए आकर्षित किया। कुछ ही समय में छत्रसाल की सेना में भारी वृद्धि होने लगी और उन्हेांने धमोनी, मेहर, बांसा और पवाया आदि जीतकर कब्जे में कर लिए।
ग्वालियर-खजाना लूटकर सूबेदार मुनव्वर खां की सेना को पराजित किया, बाद में नरवर भी जीता। सन 1671 में ही कुलगुरु नरहरि दास ने भी विजय का आशीष छत्रसाल को दिया। ग्वालियर की लूट से छत्रसाल को सवा करोड़ रुपये प्राप्त हुए पर औरंगजेब इससे छत्रसाल पर टूट-सा पड़ा। उसने सेनपति रणदूल्हा के नेतृत्व में आठ सवारों सहित तीस हजारी सेना भेजकर गढ़ाकोटा के पास छत्रसाल पर धावा बोल दिया। घमासान युद्ध हुआ पर दणदूल्हा (रुहल्ला खां) न केवल पराजित हुआ वरन भरपूर युद्ध सामग्री छोड़कर जन बचाकर उसे भागना पड़ा। इस विजय से छत्रसाल के हौसले काफी बुलंद हो गये। सन 1671-80 की अवधि में छत्रसाल ने चित्रकूट से लेकर ग्वालियर तक और कालपी से गढ़ाकोटा तक प्रभुत्व स्थापित कर लिया। सन 1675 में छत्रसाल की भेंट प्रणामी पंथ के प्रणेता संत प्राणनाथ से हुई जिन्होंने छत्रसाल को आशीर्वाद दिया-
छत्ता तोरे राज में धक धक धरती होय
जित जित घोड़ा मुख करे तित तित फत्ते होय।

बुंदेले राज्य की स्थापना
इसी अवधि में छत्रसाल ने पन्ना के गौड़ राजा को हराकर, उसे अपनी राजधानी बनाया। ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया संवत 1744 की गोधूलि बेला में स्वामी प्राणनाथ ने विधिवत छत्रसाल का पन्ना में राज्यभिषेक किया। विजय यात्रा के दूसरे सोपान में छत्रसाल ने अपनी रणपताका लहराते हुए सागर, दमोह, एरछ, जलापुर, मोदेहा, भुस्करा, महोबा, राठ, पनवाड़ी, अजनेर, कालपी और विदिशा का किला जीत डाला। आतंक के मारे अनेक मुगल फौजदार स्वयं ही छत्रसाल को चैथ देने लगे।
बघेलखंड, मालवा, राजस्थान और पंजाब तक छत्रसाल ने युद्ध जीते। परिणामतः यमुना, चंबल, नर्मदा और टोंस मे क्षेत्र में बुंदेला राज्य स्थापित हो गया।
सन 1707 में औरंगजेब का निध्न हो गया। उसके पुत्र आजम ने बराबरी से व्यवहार कर सूबेदारी देनी चाही पर छत्रसाल ने संप्रभु राज्य के आगे यह अस्वीकार कर दी।
महाराज छत्रसाल पर इलाहाबाद के नवाब मुहम्मद बंगस का ऐतिहासिक आक्रमण हुआ। इस समय छत्रसाल लगभग 80 वर्ष के वृद्ध हो चले थे और उनके दोनों पुत्रों में अनबन थी। जैतपुर में छत्रसाल पराजित हो रहे थे। ऐसी परिस्थितियों में उन्हेांने बाजीराव पेशवा को पुराना संदर्भ देते हुए सौ छंदों का एक काव्यात्मक पत्र भेजा जिसकी दो पंक्तियां थीं
जो गति गज और ग्राह की सो गति भई है आज बाजी जात बंुदेल की राखौ बाजी लाज।
फलतः बाजीराव की सेना आने पर बंगश की पराजय ही नहीं हुई वरन उसे प्राण बचाकर अपमानित हो, भागना पड़ा। छत्रसाल युद्ध में टूट चले थे, लेकिन मराठों के सहयोग से उन्हेांने कलंक का टीका सम्मान से पोंछ डाला।
यहीं कारण था छत्रसाल ने अपने अंतिम समय में जब राज्य का बंटवारा किया तो बाजीराव को तीसरा पुत्र मानते हुए बंुदेलखंड झाँसी (Jhansi), सागर, गुरसराय, काल्पी, गरौठा, गुना, सिरोंज और हटा आदि हिस्से के साथ राजनर्तकी मस्तानी भी उपहार में दी। कतिपय इतिहासकार इसे एक संधि के अनुसार दिया हुआ बताते हैं पर जो भी हो अपनी ही माटी के दो वंशों, मराठों और बुंदेलों ने बाहरी शक्ति को पराजित करने में जो एकता दिखायी, वह अनुकरणीय है।
छत्रसाल ने अपने दोनों पुत्रों ज्येष्ठ जगतराज और कनिष्ठ हिरदेशाह को बराबरी का हिस्सा, जनता को समृद्धि और शांति से राज्य-संचालन हेतु बांटकर अपनी विदा वेला का दायित्व निभाया। राज्य संचालन के बारे में उनका सूत्र उनके ही शब्दों मेंः
राजी सब रैयत रहे, ताजी रहे सिपाहि
छत्रसाल ता राज को, बार न बांको जाहि।

यही कारण था कि छत्रसाल को अपने अंतिम दिनों में वृहद राज्य के सुप्रशासन से एक करोड़ आठ लाख रुपये की आय होती थी। उनके एक पत्र से स्वष्ट होता है कि उन्होंने अंतिम समय 14 करोड़ रुपये राज्य के खजाने में (तब) शेष छोड़े थे। प्रतापी छत्रसाल ने पौष शुक्ल तृतीया भृगुवार संवत् 1788 (दिसंबर 1731) को छतरपुर (chhatarpur) (नौ गांव) के निकट मऊ सहानिया के छुवेला ताल पर अपना शरीर त्यागा और विंध्य की अपत्यिका में भारतीय आकाश पर सदा-सदा के लिए जगमगाते सितारे बन गये।
छत्रसाल की तलवार जितनी धारदार थी, कलम भी उतनी ही तीक्ष्ण थी। वे स्वयं कवि तो थे ही कवियों का श्रेष्ठतम सम्मान भी करते थे। अद्वितीय उदाहरण है कि कवि भूषण के बुंदेलखंड (bundelkhand) में आने पर आगवानी में जब छत्रसाल ने उनकी पालकी में अपना कंधा लगा दिया तो भूषण कह उठेः
और राव राजा एक चित्र में न ल्याऊं-
अब, साटू कौं सराहौं, के सराहौं छत्रसाल को।।
बुंदेलखंड (bundelkhand) ही नही संपूर्ण भारत देष ऐसे महान व्यक्तित्व के प्रति पीढ़ी दर पीढ़ी कृतज्ञ रहेगा

ओसामा बिन लादेन का जीवन परिचय


ओसामा बिन लादेन


सऊदी अरब के एक धनी परिवार में दस मार्च 1957 में पैदा हुए ओसामा बिन लादेन, अमरीका पर 9/11 के हमलों के बाद दुनिया भर में चर्चा में आए.वे मोहम्मद बिन लादेन के 52 बच्चों में से 17वें थे. मोहम्मद बिन लादेन सऊदी अरब के अरबपति बिल्डर थे जिनकी कंपनी ने देश की लगभग 80 फ़ीसदी सड़कों का निर्माण किया था.
जब ओसामा के पिता की 1968 में एक हेलिकॉप्टर दुर्घटना में मृत्यु हुई तब वे युवावस्था में ही करोड़पति बन गए. सऊदी अरब के शाह अब्दुल्ला अज़ीज़ विश्वविद्यालय में सिविल इंज़ीनियरिंग की पढ़ाई के दौरान वे कट्टरपंथी इस्लामी शिक्षकों और छात्रों के संपर्क में आए.
अनेक बहसों और अध्ययन के बाद वे पश्चिमी देशों में मूल्यों के पतन के ख़िलाफ़ और इस्लाम के कट्टरपंथी गुटों के समर्थन में खड़े हो गए. इससे पहले अपने परिवार के साथ युरोप में मनाई गई छुट्टियों की तस्वीरों में ओसामा को फैशनेबल कपड़ों में भी देखा गया था.
दिसंबर 1979 में जब सोवियत संघ ने अफगानिस्तान पर हमला किया तो ओसामा ने आरामपरस्त ज़िदंगी को छोड़ मुजाहिदीन के साथ हाथ मिलाया और शस्त्र उठा लिए.
अफ़ग़ानिस्तान में अरब लोगों के साथ मिलकर अभियान करते वक्त ही उन्होने अल कायदा के मूल संगठन की स्थापना कर ली थी. अफ़ग़ानिस्तान में मुजाहिदीन का साथ देने के बाद जब वो वापस साऊदी अरब पहुँचे तो उन्होंने साऊदी अरब के शासकों का विरोध किया. ओसामा का मानना था कि साऊदी अरब के शासकों ने ही अमरीकी सेना को साऊदी ज़मीन पर आने के लिए आमंत्रित किया था. मध्य पूर्व में अमरीकी सेना की मौज़ूदगी से नाराज़ ओसामा बिन लादेन ने 1998 में अमरीका के खिलाफ़ युद्ध की घोषणा कर दी थी.
वर्ष 1994 में अमरीकी दबाव के कारण सऊदी अरब में उनकी नागरिकता ख़त्म कर दी थी और उसके बाद वे सूडान और फिर जनवरी 1996 में दोबारा अफ़ग़ानिस्तान मे पहुँच गए. ग़ौरतलब है कि वर्ष 1998 में ही कीनिया और तंज़ानिया में अमरीकी दूतावासों में हुए दो बम धमाकों में 224 लोग मारे गए और 5000 घायल हुए. अमरीका ने ओसामा और उनके 16 सहयोगियों को प्रमुख संदिग्ध बताया.
इसके बाद अमरीका ओसामा को दुश्मन के रूप में देखने लगा और ख़ुफ़िया एजेंसी एफ़बीआई की मोस्ट वॉंटिड लिस्ट में उन्हें पकड़ने या मारने के लिए 2.5 करोड़ डॉलर के पुरस्कार की घोषणा की गई. पूर्वी अफ़ग़ानिस्तान में छह प्रशिक्षण शिविरों पर अमरीका ने ओसामा को मारने के मक़सद से 75 क्रूज़ मिसाइल दागे. लेकिन एक घंटे की देरी से उनका निशाना चूक गया.
अफ़्रीका में बम घटनाओं के साथ-साथ अमरीका ने उन्हें 1993 के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर में बम धमाके, 1995 में रियाद में कार बम धमाके, सऊदी अरब में ट्रक बम हमले का दोषी पाया.
रविवार डॉट कॉम के अनुसारसऊदी अरब में एक यमन परिवार में पैदा हुए ओसामा बिन लादेन ने अफगानिस्तान पर सोवियत हमले के ख़िलाफ़ लड़ाई में हिस्सा लेने के लिए 1979 में सऊदी अरब छोड़ दिया. अफगानी जेहाद को जहाँ एक ओर अमरीकी डॉलरों की ताक़त हासिल थी वहीं दूसरी ओर सऊदी अरब और पाकिस्तान की सरकारों का समर्थन था. मध्य पूर्वी मामलों के विश्लेषक हाज़िर तैमूरियन के अनुसार ओसामा बिन लादेन को ट्रेनिंग सीआईए ने ही दी थी.
अफ़ग़ानिस्तान में उन्होंने मक्तब-अल-ख़िदमत की स्थापना की जिसमें दुनिया भर से लोगों की भर्ती की गई और सोवियत फ़ौजों से लड़ने के लिए उपकरणों का आयात किया गया.
मौत-
पाकिस्तान के ऐबटाबाद शहर में हुए अमरीकी सेना के अभियान में 2 मई 2011 को उन्हें मार डाला गया. ओसामा बिन लादेन की मौत के 12 घंटे के बाद अमरीका के विमान वाहक पोत यूएसएस कार्ल विन्सन पर शव को एक सफ़ेद चादर में लपेट कर एक बड़े थैले में रखा गया और फिर अरब सागर में उतार दिया गया. यह सब ब्रितानी समयानुसार सुबह छह बजे हुआ. अमरीकी अधिकारी समुद्र मेंसीबीएस न्यूज़ के मुताबिक, सऊदी अरब ने शव लेने से इनकार कर दिया था. अगर यह बात सही है तो इसका मतलब उन्हें यह प्रस्ताव दिया गया था और अगर सऊदी अरब ओसामा को अपने यहाँ कहीं दफ़ना देता तो क़ब्र को मज़ार बनते देर नहीं लगती.
उसके मारे जाने के बाद अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अपने पूर्व राष्ट्रपति जॉर्ज बुश को याद करते हुये कहा कि जैसा बुश ने कहा था हमारी जंग इस्लाम के खिलाफ नहीं है. लादेन को पाकिस्तान में इस्लामाबाद के एक कंपाउंड में मारा गया. एक हफ्ते पहले हमारे पास लादेन के बारे में पुख्ता जानकारियां मिल गई थीं. उसने बाद ही कंपाउंड को घेरकर एक छोटे ऑपरेशन में लादेन को मार गिराया गया.
बराक ओबामा ने कहा कि लादेन ने पाक के खिलाफ भी जंग छेड़ी थी. हमारे अधिकारियों ने वहां के अधिकारियों से बात कि और वह भी इसे एक ऐतिहासिक दिन मान रहे हैं. यह 10 साल की शहादत की उपलबधि है. हमने कभी भी सुरक्षा से समझौता नहीं किया. अल कायदा से पीड़ित लोगों से मैं कहूंगा कि न्याय मिल चुका है.
9/11 के सकता है. पैसे और ताकत से नहीं बल्कि एकजुटता ही हमारी शक्ति है.

Monday, May 23, 2011

झाँसी की रानी महारानी लक्ष्मीबाई



महारानी लक्ष्मी बाई एक ऐसी महारानी थी !
जो आज तक न तो इतिहास में हुई है और न कभी होगी!
आज आपको पेस है उनके जीवन के कुछ मह्त्वपूर्ण कार्य !
महारानी लक्ष्मी बाई का जन्म 19 नवम्बर 1835 को वाराणसी में हुआ था!इनके बचपन का नाम मनूबाई था सब प्यारसे इन्हें मनु कहा करते थे!पेशवा बाजीराव दुतीय ने उन्हें एक नाम और दे रखा था छबिली !उनके पिता का नाम मोरोपंत ताम्बे माता का नाम भागीरथी था !4 बर्ष की आयु में ही उन्हें माता के प्रेम से बंचित होना!उनके पिता को बाजिराव ने कानपूर के पास बिठुर बुला लिया यहाँ मनूबाई को पेशवा के पुत्र नाना साहब के साथ तलबार चलाना घुङसबारी आदि सीखने को मिला!उनका विवाह 13 बरस की आयु में झाँसी के महाराजा गंगाधरराव के साथ हुआ !सोलह बरस की आयु में बे माता बनी पुत्र का नाम दामोदर रखा गया !किन्तु शीघ॒ ही उस पुत्र दामोदर की मत्यु हो गयी! इस दुःख को महाराज सहन नहीं कर पाए और कहा जाता है पुत्र शोक में उनकी मौत हो गयी !तब उन्होंने एक पुत्र को गोद लिया उसका नाम भी दामोदर रखा!16 march 1854 में रानी को निर्बर मानकर तत्कालीन गबर्नर लार्ड डलहोजी ने झाँसी को हड़प निति के तहत ब्रिटिश साम्राज्य में मिलाने का निश्चय किया !तभी रानी ने चेतावनी देते हुए कहा में अपनी झाँसी नहीं दुगी ! सन॒ 1857को नाना साहब तात्या टोपे आदि के नेतृत्व में इस युद्ध की प्रस्थ्भूमि तैयार की गयी!अग्रेजो के साथ युद्ध सुनिश्चित था !नारियों के साथ सेना में पुरुष भी सामिल किये गए!
झाँसी के राज्य को सुचारू रूप से चालने के लिए दीवान रघुनाथ सिंह को सेनापति नियुक्त किया गया तोपों का दस्ता गॉस खान को सोपा गया भाऊ बख्सी को उनका सहयोगी बना या गया !मोतीबाई को जासूसी बिभाग सोपा गया!
मह्लायो की अश्वारोही सेना का नेतित्व अपनी कृपा पात्री सहेली झलकारी बाई को सोपा गया!बारूद बनाने के लिए कुसल आदमी बुलाए गए !कड़क बिजली व भबानी शंकर नाम की टॉप बनायीं गयी!आग्रेजो के साथ युद्ध करने के पूर्व उन्हें दो युद्ध और लड़ने थे !
पहला था गंगाधरराव के सम्बन्धी सदाशिव राव के साथ व दूसरा युद्ध ओरछा के दीवान नत्थे खान के साथ हुआ !
नत्थे खान ने बीस हज़ार की सेना लेकर झाँसी के मऊरानीपुर व बरुआ सागर पर आधिकार कर लिया उसने झाँसी के किले को चारो तरफ से घेर लिया व जमकर तोपों से प्रहार किया !खूब गोलाबारी हुई अंत में नत्थे खान प्राण बचाकर भागा !
21 march 1858 को ब्रिगेडियर स्टुमर्ट के सहयोग से सर ह्यूरोज़ ने झाँसी को घेर लिया बारह दिनों तक युद्ध चला!
राव दूल्हा जू देव व अली बहादुर जैसे देशद्रोहियों ने विशवास घात किया!राव दूल्हा जू देव ने आग्रेजो की मदद के लिए ओरछा दरवाज़ा खोल दिया!
इस युद्ध में बानपुर के राजा मर्दनसिंह तथा बांदा के नबाब ने झाँसी की सहयता की आग्रेजो ने रणनीति तैयार कर ली थी अब हार सुनिश्चित थी !तब रानी ने सब सहयोगियो को बुलाकर योजना तैयार की सबने यह निछ्चय किया की सुबह सभी मार काट करते हुए भाडेरी फाटक से शत्रुओ से अंत समय तक लड़ते हुए शत्रुओ से जुझेगे!सुबह रानी भान्देरी फाटक से कालपी पहुची कालपी से रानी ग्वालियर पहुची व ग्वालियर के किले पर आधिकार कर लिया!16 जून1858
को आग्रेजो ने वहाँ भी आक्रमण कर दिया!झाँसी की सेना को परास्त पडा! रानी का घोडा उन्हें सुरक्षित स्थान पर ले जाने के लिया भागा पर आगे एक बरसाती नाला आ जाने के कारण रानी को रुकना पड़ा पर घोडा मारा गया!रानी की पसलियो में गोली लगी!एक गोरे की तलबार का भरपूर वार रानी के माथे व कंधे को चीड गया!उन्होंने आदेश दिया उनकी मृत देह आग्रेजो के हाथो न लगने पाए !व साधु गंगादास के हाथो गंगाजल पीकर देह विसर्जन किया!उनकी चिता को घास पर रखकर जला दिया गया!
उनके इस बलिदान पर हुरोज़ ने कहा था -सम्पूर्ण विश्व में रानी सबसे वीरांगना व कुशल महिला थी!उनके हाथ मखमली दास्तानो के भीतर उनकी उंगलिया फौलादी थी!
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