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Tuesday, August 30, 2011
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Sunday, August 21, 2011
कौन थे ठाकुर बुन्देलखंडी !
ठाकुर बुंदेलखंडी जाति के कायस्थ थे और इनका पूरा नाम 'लाला ठाकुरदास' था। इनके पूर्वज काकोरी, ज़िला, लखनऊ के रहने वाले थे और इनके पितामह 'खड्गराय जी' बड़े भारी मंसबदार थे। उनके पुत्र गुलाबराय का विवाह बड़ी धूमधाम से ओरछा, बुंदेलखंड के रावराजा की पुत्री के साथ हुआ था। ये ही गुलाबराय ठाकुर कवि के पिता थे। किसी कारण से गुलाबराय अपनी ससुराल ओरछा में ही आ बसे जहाँ संवत् 1823 में ठाकुर का जन्म हुआ। शिक्षा समाप्त होने पर ठाकुर अच्छे कवि निकले और जैतपुर में सम्मान पाकर रहने लगे। उस समय जैतपुर के राजा केसरी सिंह जी थे। ठाकुर के कुल के कुछ लोग 'बिजावर' में भी जा बसे थे। इससे ये कभी वहाँ भी रहा करते थे। बिजावर के राजा ने एक गाँव देकर ठाकुर का सम्मान किया। जैतपुर नरेश 'राजा केसरी सिंह' के उपरांत जब उनके पुत्र राजा 'पारीछत' गद्दी पर बैठे तब ठाकुर उनकी सभा के रत्न हुए। ठाकुर की ख्याति उसी समय से फैलने लगी और वे बुंदेलखंड के दूसरे राजदरबारों में भी आने जाने लगे। बाँदा के हिम्मतबहादुर गोसाईं के दरबार में कभी कभी पद्माकर जी के साथ ठाकुर की कुछ नोंक झोंक की बातें हो जाया करती थीं।
एक बार पद्माकर जी ने कहा - 'ठाकुर कविता तो अच्छी करते हैं पर पद कुछ हलके पड़ते हैं।'
इस पर ठाकुर बोले - 'तभी तो हमारी कविता उड़ी उड़ी फिरती है।'
इतिहास में प्रसिद्ध है कि हिम्मतबहादुर कभी अपनी सेना के साथ अंग्रेजों का कार्य साधन करते थे और कभी लखनऊ के नवाब के पक्ष में लड़ते। एक बार हिम्मतबहादुर ने राजा पारीछत के साथ कुछ धोखा करने के लिए उन्हें बाँदा बुलाया। राजा पारीछत वहाँ जा रहे थे कि मार्ग में ठाकुर कवि मिले और दो ऐसे संकेत भरे सवैये पढ़े कि राजा पारीछत लौट गए। एक सवैया यह है -
कैसे सुचित्त भए निकसौ बिहँसौ बिलसौ हरि दै गलबाहीं।
ये छल छिद्रन की बतियाँ छलती छिन एक घरी पल माहीं॥
ठाकुर वै जुरि एक भईं, रचिहैं परपंच कछू ब्रज माहीं।
हाल चवाइन की दुहचाल की लाल तुम्हें है दिखात कि नाहीं॥
कहते हैं कि यह हाल सुनकर हिम्मतबहादुर ने ठाकुर को अपने दरबार में बुला भेजा। बुलाने का कारण समझकर भी ठाकुर बेधड़क चले गए। जब हिम्मतबहादुर इन पर झल्लाने लगे तब इन्होंने यह कवित्त पढ़ा -
वेई नर निर्नय निदान में सराहे जात,
सुखन अघात प्याला प्रेम को पिए रहैं।
हरि रस चंदन चढ़ाय अंग अंगन में,
नीति को तिलक, बेंदी जस की दिएरहैं।
ठाकुर कहत मंजु कंजु ते मृदुल मन,
मोहनी सरूप, धारे, हिम्मत हिए रहैं।
भेंट भए समये असमये, अचाहे चाहे,
और लौं निबाहैं, ऑंखैं एकसी किएरहैं।
इस पर हिम्मतबहादुर ने जब कुछ और कटु वचन कहा तब सुना जाता है कि ठाकुर ने म्यान से तलवार निकाल ली और बोले ,
सेवक सिपाही हम उन रजपूतन के,
दान जुद्ध जुरिबे में नेकु जे न मुरके।
नीत देनवारे हैं मही के महीपालन को,
हिए के विसुद्ध हैं, सनेही साँचे उर के।
ठाकुर कहत हम बैरी बेवकूफन के,
जालिम दमाद हैं अदानियाँ ससुर के।
चोजिन के चोजी महा, मौजिन के महाराज,
हम कविराज हैं, पै चाकर चतुर के।
हिम्मतबहादुर यह सुनते ही चुप हो गए। फिर मुस्कारते हुए बोले - 'कवि जी बस! मैं तो यही देखना चाहता था कि आप कोरे कवि ही हैं या पुरखों की हिम्मत भी आप में है।' इस पर ठाकुर जी ने बड़ी चतुराई से उत्तर दिया - 'महाराज! हिम्मत तो हमारे ऊपर सदा अनूप रूप से बलिहार रही है, आज हिम्मत कैसे गिर जाएगी?' ठाकुर कवि का परलोकवास संवत् 1880 के लगभग हुआ। अत: इनका कविताकाल संवत् 1850 से 1880 तक माना जा सकता है। इनकी कविताओं का एक अच्छा संग्रह 'ठाकुर ठसक' के नाम से श्रीयुत् लाला भगवानदीनजी ने निकाला है। पर इसमें भी दूसरे दो ठाकुर की कविताएँ मिली हुई हैं। इस संग्रह में विशेषता यह है कि कवि का जीवनवृत्त भी कुछ दे दिया गया है। ठाकुर के पुत्र दरियाव सिंह (चतुर) और पौत्र शंकरप्रसाद भी कवि थे
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इंडिया की प्रतिभा
Friday, August 12, 2011
क्यों मानते है रक्षाबंधन

पौराणिक कथा-
राखी का त्योहार कब शुरू हुआ यह कोई नहीं जानता। लेकिन भविष्य पुराण में वर्णन है कि देव और दानवों में जब युध्द शुरू हुआ तब दानव हावी होते नज़र आने लगे। भगवान इन्द्र घबरा कर बृहस्पति के पास गये। वहां बैठी इंद्र की पत्नी इंद्राणी सब सुन रही थी। उन्होंने रेशम का धागा मंत्रों की शक्ति से पवित्र कर के अपने पति के हाथ पर बांध दिया। वह श्रावण पूर्णिमा का दिन था। लोगों का विश्वास है कि इंद्र इस लड़ाई में इसी धागे की मंत्र शक्ति से विजयी हुए थे। उसी दिन से श्रावण पूर्णिमा के दिन यह धागा बांधने की प्रथा चली आ रही है। यह धागा धन,शक्ति, हर्ष और विजय देने में पूरी तरह समर्थ माना जाता है
ऐतिहासिक कथा -
राजपूत जब लड़ाई पर जाते थे तब महिलाएं उनको माथे पर कुमकुम तिलक लगाने के साथ साथ हाथ में रेशमी धागा भी बांधती थी। इस विश्वास के साथ कि यह धागा उन्हे विजयश्री के साथ वापस ले आएगा। राखी के साथ एक और प्रसिद्ध कहानी जुड़ी हुयी है। कहते हैं, मेवाड़ की महारानी कर्मावती को बहादुरशाह द्वारा मेवाड़ पर हमला करने की पूर्वसूचना मिली। रानी लड़ऩे में असमर्थ थी। उसने मुगल राजा हुमायूं को राखी भेज कर रक्षा की याचना की। हुमायूँ ने मुसलमान होते हुए भी राखी की लाज रखी और मेवाड़ पहुँच कर बहादुरशाह के विरूद्ध मेवाड़ की ओर से लड़ते हुए कर्मावती और उसके राज्य की रक्षा की।[21] कहते है सिकंदर की पत्नी ने अपने पति के हिंदू शत्रु पुरूवास को राखी बांध कर अपना मुंहबोला भाई बनाया और युद्ध के समय सिकंदर को न मारने का वचन लिया। पुरूवास ने युद्ध के दौरान हाथ में बंधी
राखी का और अपनी बहन को दिये हुए वचन का सम्मान करते हुए सिकंदर को जीवदान दिया
साहित्यिक कथा-
अनेक साहित्यिक ग्रंथ ऐसे हैं जिनमें रक्षाबंधन के पर्व का विस्तृत वर्णन मिलता है। इनमें सबसे अधिक महत्वपूर्ण है हरिकृष्ण प्रेमी का ऐतिहासिक नाटक रक्षाबंधन जिसका 1991 में 18वाँ संस्करण प्रकाशित हो चुका है।[25] मराठी में शिंदे साम्राज्य के विषय में लिखते हुए रामराव सुभानराव बर्गे ने भी एक नाटक लिखा है जिसका शीर्षक है राखी ऊर्फ रक्षाबंधन।[26][27] पचास और साठ के दशक में रक्षाबंधन हिंदी फ़िल्मों का लोकप्रिय विषय बना रहा। ना सिर्फ़ 'राखी' नाम से बल्कि 'रक्षाबंधन' नाम से भी फ़िल्म बनाई गई। 'राखी' नाम से दो बार फ़िल्म बनी, एक बार सन 1949 में, दूसरी बार सन 1962 में, सन 62 में आई फ़िल्म को ए. भीमसिंह ने बनाया था, कलाकार थे अशोक कुमार, वहीदा रहमान, प्रदीप कुमार और अमिता। इस फ़िल्म में राजेंद्र कृष्ण ने शीर्षक गीत लिखा था- 'राखी धागों का त्यौहार'। सन 1972 में एस.एम.सागर ने फ़िल्म बनाई थी 'राखी और हथकड़ी' इसमें आर.डी.बर्मन का संगीत था। सन 1976 में राधाकांत शर्मा ने फ़िल्म बनाई 'राखी और राइफल'। दारा सिंह के अभिनय वाली यह एक मसाला फ़िल्म थी। इसी तरह से सन 1976 में ही शांतिलाल सोनी ने सचिन और सारिका को लेकर फ़िल्म 'रक्षाबंधन' नाम की बनाई
Wednesday, August 10, 2011
MERE- BROTHER- KI- DULHAN MOVIE'S SONGS

MERE BROTHER KI DULHAN-"download"
DHUNKI-"download"
CHOOMANTAR-"download"
ISQ RISK-"download"d
MADHUBALA-"download"
DO DHAARI TALWAAR-"download"
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HINDI SONGS
महान क्रन्तिकारी चंद्रशेखर आजाद यहाँ भी !

आज में आपको एक ऐसी जगह के बारे में बताने वाला हू !जिसके बारे में सायद ही आप जानते हो यहाँ पर् इतिहास के उस दिन की याद आज भी मोजूद है !में बात कर हू बुंदेलखंड में जिला पन्ना में जो हीरो के लिए प्रसिद है!यहाँ पर् ४ सितम्बर 1929 को स्वतंत्रता सेनानी श्री चंद्रशेखर की अध्यक्षता में क्रांतिकारियो की बैठक सम्पन हुई थी !इस बैठक का आयोजन पंडित राम सहाय तिवारी ने किया था !इसमें जिला टीकमगढ़ के श्री नारायणदास खरे व प्रेम नारायण और सरीला के निवासी विहारी लाल और महोबा के निवासी जय नारायण और झाँसी के चार अन्य लोगो ने इस बैठक में भाग लिया था !यह जगह बहुत घने जंगल में आज भी मोजूद है जहा पर् पांडव फोल नाम का जल प्रपात भी है !यह जगह पन्ना टाइगर रिजर्व के पास ही है !जहा पर् चन्द्रशेखर जी की प्रतिमा भी बनी हुई है !
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कुछ और भी
Friday, August 05, 2011
आरक्षण फिल्म के गाने
ARAKSHAN MOVIE SONGS
आज मैने आपके लिए इस ब्लॉग से कुछ नयी फिल्मो के गाने उपलब्ध करवाने का प्रयाश किया!आज आपके लिए पेस है प्रकाश झा की फिल्म आरक्षण के सभी गाने !

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