Sunday, August 21, 2011

कौन थे ठाकुर बुन्देलखंडी !


ठाकुर बुंदेलखंडी जाति के कायस्थ थे और इनका पूरा नाम 'लाला ठाकुरदास' था। इनके पूर्वज काकोरी, ज़िला, लखनऊ के रहने वाले थे और इनके पितामह 'खड्गराय जी' बड़े भारी मंसबदार थे। उनके पुत्र गुलाबराय का विवाह बड़ी धूमधाम से ओरछा, बुंदेलखंड के रावराजा की पुत्री के साथ हुआ था। ये ही गुलाबराय ठाकुर कवि के पिता थे। किसी कारण से गुलाबराय अपनी ससुराल ओरछा में ही आ बसे जहाँ संवत् 1823 में ठाकुर का जन्म हुआ। शिक्षा समाप्त होने पर ठाकुर अच्छे कवि निकले और जैतपुर में सम्मान पाकर रहने लगे। उस समय जैतपुर के राजा केसरी सिंह जी थे। ठाकुर के कुल के कुछ लोग 'बिजावर' में भी जा बसे थे। इससे ये कभी वहाँ भी रहा करते थे। बिजावर के राजा ने एक गाँव देकर ठाकुर का सम्मान किया। जैतपुर नरेश 'राजा केसरी सिंह' के उपरांत जब उनके पुत्र राजा 'पारीछत' गद्दी पर बैठे तब ठाकुर उनकी सभा के रत्न हुए। ठाकुर की ख्याति उसी समय से फैलने लगी और वे बुंदेलखंड के दूसरे राजदरबारों में भी आने जाने लगे। बाँदा के हिम्मतबहादुर गोसाईं के दरबार में कभी कभी पद्माकर जी के साथ ठाकुर की कुछ नोंक झोंक की बातें हो जाया करती थीं।

एक बार पद्माकर जी ने कहा - 'ठाकुर कविता तो अच्छी करते हैं पर पद कुछ हलके पड़ते हैं।'
इस पर ठाकुर बोले - 'तभी तो हमारी कविता उड़ी उड़ी फिरती है।'

इतिहास में प्रसिद्ध है कि हिम्मतबहादुर कभी अपनी सेना के साथ अंग्रेजों का कार्य साधन करते थे और कभी लखनऊ के नवाब के पक्ष में लड़ते। एक बार हिम्मतबहादुर ने राजा पारीछत के साथ कुछ धोखा करने के लिए उन्हें बाँदा बुलाया। राजा पारीछत वहाँ जा रहे थे कि मार्ग में ठाकुर कवि मिले और दो ऐसे संकेत भरे सवैये पढ़े कि राजा पारीछत लौट गए। एक सवैया यह है -

कैसे सुचित्त भए निकसौ बिहँसौ बिलसौ हरि दै गलबाहीं।
ये छल छिद्रन की बतियाँ छलती छिन एक घरी पल माहीं॥
ठाकुर वै जुरि एक भईं, रचिहैं परपंच कछू ब्रज माहीं।
हाल चवाइन की दुहचाल की लाल तुम्हें है दिखात कि नाहीं॥

कहते हैं कि यह हाल सुनकर हिम्मतबहादुर ने ठाकुर को अपने दरबार में बुला भेजा। बुलाने का कारण समझकर भी ठाकुर बेधड़क चले गए। जब हिम्मतबहादुर इन पर झल्लाने लगे तब इन्होंने यह कवित्त पढ़ा -

वेई नर निर्नय निदान में सराहे जात,
सुखन अघात प्याला प्रेम को पिए रहैं।
हरि रस चंदन चढ़ाय अंग अंगन में,
नीति को तिलक, बेंदी जस की दिएरहैं।
ठाकुर कहत मंजु कंजु ते मृदुल मन,
मोहनी सरूप, धारे, हिम्मत हिए रहैं।
भेंट भए समये असमये, अचाहे चाहे,
और लौं निबाहैं, ऑंखैं एकसी किएरहैं।
इस पर हिम्मतबहादुर ने जब कुछ और कटु वचन कहा तब सुना जाता है कि ठाकुर ने म्यान से तलवार निकाल ली और बोले ,
सेवक सिपाही हम उन रजपूतन के,
दान जुद्ध जुरिबे में नेकु जे न मुरके।
नीत देनवारे हैं मही के महीपालन को,
हिए के विसुद्ध हैं, सनेही साँचे उर के।
ठाकुर कहत हम बैरी बेवकूफन के,
जालिम दमाद हैं अदानियाँ ससुर के।
चोजिन के चोजी महा, मौजिन के महाराज,
हम कविराज हैं, पै चाकर चतुर के।

हिम्मतबहादुर यह सुनते ही चुप हो गए। फिर मुस्कारते हुए बोले - 'कवि जी बस! मैं तो यही देखना चाहता था कि आप कोरे कवि ही हैं या पुरखों की हिम्मत भी आप में है।' इस पर ठाकुर जी ने बड़ी चतुराई से उत्तर दिया - 'महाराज! हिम्मत तो हमारे ऊपर सदा अनूप रूप से बलिहार रही है, आज हिम्मत कैसे गिर जाएगी?' ठाकुर कवि का परलोकवास संवत् 1880 के लगभग हुआ। अत: इनका कविताकाल संवत् 1850 से 1880 तक माना जा सकता है। इनकी कविताओं का एक अच्छा संग्रह 'ठाकुर ठसक' के नाम से श्रीयुत् लाला भगवानदीनजी ने निकाला है। पर इसमें भी दूसरे दो ठाकुर की कविताएँ मिली हुई हैं। इस संग्रह में विशेषता यह है कि कवि का जीवनवृत्त भी कुछ दे दिया गया है। ठाकुर के पुत्र दरियाव सिंह (चतुर) और पौत्र शंकरप्रसाद भी कवि थे

8 comments:

Surendra shukla" Bhramar"5 said...

उपेन्द्र शुक्ल जी कवी में पुरखों की हिम्मत तो है ही ...सुन्दर जानकारी
कान्हा किसी भी रूप में आयें दुष्टों का संहार करें अच्छाइयों को विजय श्री दिलाएं ..आन्दोलन सफल हो
...जन्माष्टमी की हार्दिक शुभ कामनाएं आप सपरिवार और सब मित्रों को भी
भ्रमर ५

चोजिन के चोजी महा, मौजिन के महाराज,
हम कविराज हैं, पै चाकर चतुर के।

Dr (Miss) Sharad Singh said...

लाला ठाकुरदास पर बहुत सारगर्भित जानकारी दी है आपने.
अच्छी प्रस्तुति के लिए बधाई तथा शुभकामनाएं !

virendra sharma said...

उपेन्द्र शुक्लाजी ,इस दौर में आपका संग साथ ही अन्ना जी की ताकत है .ऊर्जा और आंच दीजिए इस मूक क्रान्ति को .लाला ठाकुर दास कविवर पर शोधपरक बेहतरीन जानकारी दी है आपने अपने साहित्य परक तेवरों के संग .बहुत अच्छी पोस्ट .
ram ram bhai

सोमवार, २२ अगस्त २०११
अन्ना जी की सेहत खतरनाक रुख ले रही है . /
http://veerubhai1947.blogspot.com/

Urmi said...

लाला ठाकुरदास के बारे में बहुत ही बढ़िया और महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त हुई! धन्यवाद !
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/

virendra sharma said...

ऐसा ही लगता अन्नाउपेन्द्र शुक्ला जी ,बबली जी आपकी हाजिरी का शुक्रिया , , लफडा तो अब इनखुफिया तोतों के साथ ही हो गया . ,हो सकता है इन्हें पौराणिक कपिल मुनि की सचमुच आवाजें ही सुनाई दे रहीं हों ,ऑडियो हेल्युसिनेशन हो रहें हों ,दुचित्ता और दुरंगा तो यह आदमी है ही ,आदमी का आदमी जोगी का जोगी ,जासूस का जासूस ,हद तो यह है कोंग्रेस में तोतों के भी आगे तोते होतें हैं ,कुछ प्राधिकृत तोतें हैं जो गाली गुफार में माहिर हैं .पहले ऐसे तोतों को वैश्या के तोते कहा जाता था ,अब ये हाई कमान के तोते कहातें हैं ,गौरवानित होतें हैं .वेदांगी का तोता मन्त्र जाप करता था .राजनीति का जालसाजी .आपकी ब्लोगिया हाजिरी के लिए आभार ,७५ %तो हमारी भी होंगी "जाट देवता के सफ़र "पर .

virendra sharma said...

ऐसा ही लगता अन्नाउपेन्द्र शुक्ला जी , आपकी हाजिरी का शुक्रिया , , लफडा तो अब इनखुफिया तोतों के साथ ही हो गया . ,हो सकता है इन्हें पौराणिक कपिल मुनि की सचमुच आवाजें ही सुनाई दे रहीं हों ,ऑडियो हेल्युसिनेशन हो रहें हों ,दुचित्ता और दुरंगा तो यह आदमी है ही ,आदमी का आदमी जोगी का जोगी ,जासूस का जासूस ,हद तो यह है कोंग्रेस में तोतों के भी आगे तोते होतें हैं ,कुछ प्राधिकृत तोतें हैं जो गाली गुफार में माहिर हैं .पहले ऐसे तोतों को वैश्या के तोते कहा जाता था ,अब ये हाई कमान के तोते कहातें हैं ,गौरवानित होतें हैं .वेदांगी का तोता मन्त्र जाप करता था .राजनीति का जालसाजी .आपकी ब्लोगिया हाजिरी के लिए आभार ,७५ %तो हमारी भी होंगी "जाट देवता के सफ़र "पर .

virendra sharma said...

शुक्रिया उपेन्द्र भाई !
सोमवार, २९ अगस्त २०११
क्या यही है संसद की सर्वोच्चता ?
http://veerubhai1947.blogspot.com/

pappu choudhary said...

Good

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